भावना ‘बेचैनी बात बातमे’
जुड जुड हावा बहत हे हाई रि ई पुष महीना में
जाड़ के असर कतना हे आके देखो मोर आँग्ना में ।
कब उराई जाड़ मिच्छाई जाबे आगी तापत तप्ता में
जन काहिक लागता अक्केले जुड जुड ई सथरि में ।
समझ नाई पईतु काहिक हुइता बेचैनी बात बात में
दिलके बात सम्झैया कुई हे की अंधेरी करिया रात में ।
अब ते कुई साजना ढूँढेक परि दीनमें दिया बार बार के
माघ आइत हे करम खूब मस्ती कुई प्याराक याद में ।
पुरा करीयो मोर माँगन भग्मान चढैम करिया मुर्गा मान के
रात नाई कटता तुम्हर वीन प्यारा ई पुषक कडक जाड़ में ।
महुँ कहम दाई बाबा ती बेहके बात चलैयो आइत माघ में
कुई तो बनी मोर फेक सजना जेहका मैं ड़ूबल हौं याद में ।
साजन के जोडी तो बहुत जलमल हुइहें ई सुन्दर संसार में
एक प्यार वाला साजना पठाउ अइत रहल बसन्त बहार में ।
पुष के रात तो जैसे तैसे कटा लहमु पैराक गद्दम सुत के
जाड़ तभी कटी है जब ब्यवस्था होई रुई, फुई , दुई हुई के ।
रचनाकार -बिपासा कठरिया
बन्ना भुरबा
