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फगुई (होली) एक परिचय

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राजेन्द्र कठरिया, ४ चैत ।। बसन्त ऋतु के आगमन संघे हर्ष उल्लास के साथ मनैना आउ रंगके पबनी के रुपमे जानल जिना होली कठरिया समुदायके एक खास पबनी है । कठरिया भर यी पबनी ती फगुई कहतीयाँ । फागुन पुनमाशीके दिन ती चिर डुंगके (होलीका दहन करके) शुरु हुइना फगुई होरी नाँचके आउ रंग गुलाल खेलके हम्मर कठरिया भर धुमधाम ती मनैतीयाँ । असत्यके उप्पर सत्यके जीतके रुपमे मनैना यी पबनीके बारेमे हम्मर पौराणिक गितबाँस आउ कथामे फेक उल्लेख करल मिलता ।

फगुईक बारेमे हम्मर पौराणिक कथाके अनुसार, हिण्यकश्यप कहना एक दैत्य राजा रहे उ अपना राज्यमे बिष्णु भगवानके पुजापाठ नाई करे देहे, याहाँ तक कि बिष्णु भगमानके नाम फेक लेहे नाई देहे । जब हिण्यकश्यपके लौंडा लरका होईल, उ छोटे ती भगमान रामके भक्त निकरल । वहका नाँउ प्रहलाद रहे । जब हिण्यकश्यपु अपन लौंडा प्रहलाद वहके भगवान रामके भक्ती करेती नाई रोके सिकल तब प्रहलाद वहके मृत्यु दण्ड देहना निर्णय करल । प्रहलाद वहके मारेक तहन हिण्यकश्यप तमाम उपाय करल, मुल मारे नाई सकल तब हिण्यकश्यपके बहिनी होलीका कहता दादा बहुत ढेर काठिक् चिता बनबा मै प्रहलाद वहके गोदीमे लैके चितामे बैठमु तौ आगी लगादिजीयो आउ प्रहलाद जरके मरजाई । काहिकी होलीका आगी ती नाई जरना बरदान पैले रहे । मुल जब चितामे आगी लगैने तब प्रहलाद भगवान रामके नाम “राम” “राम” जपत जिन्दा बच गेल आउ होलीका उही आगीमे जरके भष्म हुईगेल । उ दिन फागुन पुनमाशी रहे । तबती हर साल फगुन पुनमाशीक दिन चीर डुंगतियाँ आउ कहतियाँ होलीका वहके डुंगत होई, राक्षसी मर गैइल कहिके गित गैतियाँ, नचतियाँ आउ रंग गुलाल खेलके उत्सब मनैतियाँ ।

हम्रे कठरिया भर फागुन पुनमाशी के दिन गाँउ भरका सक्कु घरती उगाहल कंडी आउ काठीक् चीर डुंगके वहका आठ दिन तक फगुई मनैती । चीर डुंगे बखत सिमराके एक पेड लगैना चलन है वहका तहन सांहिजुन टुकनीमे लइके गइल चाउर, मिठाई, हरदी, तेल, दुध आउ टका पैसा सिमराक जरतीर चढाके पुजा करके कच्चा सुत ( डोरा ) पेडमे बांधके एक हाथले एक साँसमे पाँच दाँउ मारके सिमराक पेड खुदतियांँ । हमरे सिमरा मोल लहत होई कैहके पैसा धरतियांँ । तब उहि सिमराके पेड चीर डुंगे बखत चीरके एक पांँजर गड्हा खोदके टुकनीमे लाइल सक्कु सामान चढाके पैसा धरके लगैतियाँं । उ जग्गा मोल लहत होई कैहके पैसा धरतियांँ । प्रहलादके प्रतिकके रुपमे सिमरा लगैना चलन है । आज फेक सिमरा कठरिया गाँउक प्रतिकके रुपमे है । गाँउक दखिन् सिमराक तमाम रुख्खा एक्केतिर देखके यी कठरिया गाँउ है कैहकै सबकुई अनुमान लगाईसकी । काहिक की चिर जब फेक अपन गांउक दखिन् डुंगतियाँ । चिर डुंगलके दोसर दिन मिझनीजुन गाँउ भरका लोग, मेहरुवा, लौंडा, लौडिया सबजाने धुर बुताई जैतियाँ । लोगभर अलग आउ मेहरुवा भर अलग्गे होके सिमराके चारो घैं घुमत गित गा के होरी नाचत धुर बुतैतीयाँ, यहके ठड्मा होरी कहतियाँ । धुर बुताई बखत के होरीके गीत

मथुरासे होरी आमै रे, मथुरासे होरी आमै रे
खेलत गोपी गोल लाल मथुरासे होरी आमै रे , मथुरासे होरी आमै रे
कौन नचे, कौन गाामै हरे कौन बजामे ताल लाल
मथुरासे होरी आमै र, मथुरासे होरी आमै रे
राधिन नचे गेपी गामै रै, राधिन नचे गेपी गामै रै,
हरे किसुन बजामे ताल लाल
मथुरासे होरी आमै रे, मथुरासे होरी आमै रे

धुर बुतासिकके सक्कु जाने भलमन्सा घर अईतियाँ आउ धुर बुताई बिरीया अलगे अलग नाचल होरी अक्कमे मिलाके लौंडा लौंडिया एकसंघे होरी नचतियाँ । यहके खिचरी होरी कहतियाँ ।

खिचरी मिलाइल दुसरा दिनती लोग आउ लौंडा भर झगिया, धोती कुल्ही लगाके मेहरुवा आउ लौंडिया भर अंगिया, हुनियाँ, नहंगा आउ गहना लैके सज–धजके खकरेहडा तक गाँउ भर सबका घर होरी नचतियांँ । एक जना अगडियाके अगुवाईमे पुरा होरीभर होरी नांँच नचतियांँ । लत्ता खराब नहोबे कैहकै खकरेहडा ती पहिले रंग नाई खिलतियांँ, कुई जबरजस्ती रंग खिलाइल तौ दण्ड तिरेक परता । बाजाके रुपमे कठरिया भरिन बहुत प्रसिद्ध ढोल बजैतियाँ । ढोल बाजत सुनके सबका तन मन खुशीती झुम उठता । धुर बुताइल पहिले दिनती लैकै सात दिन तक होरी नाचके, आठवां खकरेहरक दिन दिनके धुमधामती रंग आउ गुलाल खेलके फगुई पुरा हुईता ।

अब समय संगे फगुई मनैना प्रचलनमे बदलाब होईत जाईत है । समयके कमी आउ अपन अपन कामके ब्यस्तता कहेक परल या पश्चिमा संस्कृतीके प्रभाब पहिले कैसा आठ दिन तक फगुई नाई मनैतियाँ । दुई तीन दिन मे फगुई उराजीता । अइसनही फगुईमे तमाम मेलके बिसंगती फेर आईलागल है । दारुजाँड पिके जबरजती रंग डरना, मुडियामे अण्डा फुरना, केमिकल वाला पक्का रंग लगैना, फुलंगामे पानी भरके मरना जैसन नाईमजा पक्क्ष फेर फगुईमे दिखाई परता । तभिकमारे हम्मर संस्कृती बहके बचाइक तहन यहमे रहल गलत चिज वहके सुभार करती मजा चिज वहके बचाके निरन्तर रुपमे आगे बढैना जरुरी है । फगुई आउ होरीमे हम्मर गितबांस, भेषभुषा, चालचलन आउ ईतिहांस फेर लुकल है । यदि हम्मरे यहके बचाई सिकब कहले ती हमरे अपना पहिचानके जग वहके जरुर सुरक्षित करे सिकब ।

घोडाघोडी नपा १० पहलमानपुर (सिसैया) कैलाली

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