हमरे पिछड़ल होइ काहिक कहता मोर समाज ?
हम्मर ना कुइ आगे ना कुइ पाछे कहता मोर समाज
हम्मर तिया ना कुइ मेलके परसासनिक पकडे हे
ना कुइ आगे नेंगे वाला हे कहता मोर अपना समाज
सिच्छादिच्छा मे फेक पछेलल होइ कहता समाज
राजनितिके ‘रा’फेक बोले नाइ जन्ता मोर समाज ।
मइ कह्तुँ काहिक पिछड़ल हे मोर कठरिया समाज
जब हम्मर आजा, दादो, पुरखा हिँका जमिन्दार रेंहें ।।
तउ का देखत फिरत रेहे मोर समृद्ध कठरिया समाज ?
जब धन के भण्डार भरल रेहे त का देखत रे हे इ समाज ?
परम्परा के नाउँ मे गल्ति काहिक करति गइल मोर समाज ?
परसासन मे नउकरि सुन भागत काहिक रेहे मोर समाज ?
जमिनदारि रहल जबलक ते काहिक नाइ बढल मोर समाज ?
पढाइ लिखाइ मे काहिक नाइ ध्यान धरल बताउ मोर समाज ?
जब गाउँ गाउँ मे भलमनसा,चउधरिया,पधनाक अधिकार चलत
रेहे तउ का देख सुतल रहल प्रसन करत हउँ इ मोर समाज ति ?
कुछ आजा बाबा, दादो पुरखा कुछ सरकार फेक दुनू दोसी रहल होइ हमरे पाछे हुइना मे कहता मोर अपना समाज
पढ्ना लिखना उमेर मे लउँणालउँणिया मिल रातदिन गुलछररा
उडाइत फिरने ते नउकरि कइसे करि अपने बताउ मोर समाज
भलमनसा, पधना आउ चउधरियाक लरका होइ का करबो रेउ
पढ लिख के रहल घमंड मे केल डुबल रहिगेल हम्मर इ समाज ।
उराइल भलमनसा, पधना, चउधरियाक फुटगेल धरम्बख्खारि
जमिनदार रहि पहिले देखो हमरे अब हुईगिलि सब भिखारि
जो कुछ बचल खुचल हे हम्मर तिया उहि वहके अब सपारि।।
✍️अर्जुन सिंह कठरिया
पहलमानपुर, कैलाली
