भावना ‘मोर दिलमें बेचैनी हे’
मोर दिलमें बेचैनी हे, निन्द नाई लगता
अब ते रातमें केल जागत बन्ना मजा लगता
मोहके पता नाई हे कि हम्मर भविष्य का होई
मगर अपना बोली भाषा मनकत मजा लगता ।
मोहके हक अधिकार का हे पता नाई हे
पर कठरियन पहिचान दिबैना बात करत मजा लगता
अपना कला, संस्कृति, बोली भाषक बहुत प्यार हे
उहिमारे पहिचान के आवाज बुलंद करत मजा लगता ।।
कब बनब हमरे नेता , संसद,व्यापारी अधिकारी पता नाई हे
मुल सुन्दर सपना सजाईत मजा लगता
हमरे अपना विचार आउ कर्म कब बदलब पता अभे नाई हे
लेकिन एक दिन इतिहास जरुर लिखब कहत मजा लगता ।।।
मैं दिल वहके बहुत बहलाबे पुट्लाबे मनती नाई रेहे
सायद कठरियन तहनि केल धडकत मजा लगता
मोर दिलमें बेचैनी हे, निन्द नाई लगता
अब ते रातमें केल जागत बन्ना मजा लगता ।।।।
लेखक अर्जुन सिंह कठरिया
पहलमानपुर, कैलाली