सावन के वेला पुरबइया कि सजनि के संघ मँगता
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी कि भिज़ेक इ मन करता
आइल हे प्यारके मौसम कि इ दिल तुमके ढूँढ़ता।
पुरानी यादमें इ दिल हिराइक आज काहिक खुजता
सायद सावन आइल हे उही मारे तुमके याद करता
परि डोला सावनके डोलब जोडी बनके इ मन तरसता ।
आइल हे सावन चारो घइन हे हरियाली ओ पियारि
बस सवानियाँ डोला ड़ोललके याद हे केवल खाली
इ जान हे बस बचल हो ए सुनरि हरियर दुपट्टा वाली।
पइन्धके आँगीयाँ ,नहँगा,चुरबा,हुनियाँ न सरमाउ रि
पइन्धके गतिया,पउला,धोती,भिग्बा तुमके मिले ज़ाउँ रि
चले सवानियाँ गीत डोला डोलत संग आधा पाख रि।
उ दिन सायद अब लदग्याल खालि रहिगेल बात हो
जाइ मिले किँचा काँदा में बनाके डेगा आधा रात हो
कहाँ मजा रहिगेल अँख्लगनी अँख्लगनाक प्यारमें ।
अब दिल तरसत हे सवानियाँ डोलाक याद ही याद में
कुइ तो सुरु करो रे अब सवानियाँ डोला अपना गाउँ में
पुनर्जागरण ते लाउ गीत-बाँस, बोली-भाषा के नाउँ में ।
दिन आइल हे सावनके डोला डरना सजनिक गाउँ में
साथ देउ सब जने डोला डरना परम्परा बचइना बात में ।
अर्जुन सिंह कठरिया
पहलमानपुर, कैलाली
